सितम Poetry (page 39)

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम

आले रज़ा रज़ा

ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे

आल-ए-अहमद सूरूर

जब कभी बात किसी की भी बुरी लगती है

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

ओ सितमगर तिरी तलवार का धब्बा छट जाए

आग़ा अकबराबादी

पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा

आग़ा अकबराबादी

जा लड़ी यार से हमारी आँख

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर

आफ़ताब राईस पानीपती

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