आप ही अपने ज़रा जौर-ओ-सितम को देखें
हम अगर अर्ज़ करेंगे तो शिकायत होगी
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बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया
नहीं है हाजियों को मय-कशी की कैफ़िय्यत
बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन आसमान में
किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं
इन की मिज़ा है काबा-ए-अबरू में मोतकिफ़
मय पी के ईद कीजिए गुज़रा मह-ए-सियाम
पाया है इस क़दर सुख़न-ए-सख़्त ने रिवाज
का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर
बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर
उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा