हाँ मुझ पे सितम भी हैं बहुत वक़्त के लेकिन
कुछ वक़्त की हैं मुझ पे इनायात वो तुम हो
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ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच
बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई का
अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई
इम्कान
कहाँ का सब्र सौ सौ बार दीवानों के दिल टूटे
ख़ुद फ़रेब
मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ
इतना सोचा तुझे कि दुनिया को
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो
कैसे दुख कितनी चाह से देखा
ये आँसू ये पशेमानी का इज़हार
वक़्त बे-मेहर है इस फ़ुर्सत-ए-कमयाब में तुम