सितम Poetry (page 22)

लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का

ग़ालिब

क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर

ग़ालिब

क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है

ग़ालिब

कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

ग़ालिब

है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ

ग़ालिब

घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर

ग़ालिब

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ

ग़ालिब

बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए

ग़ालिब

बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

ग़ालिब

रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही

फ़ुज़ैल जाफ़री

वह ज़ुल्म-ओ-सितम ढाए और मुझ से वफ़ा माँगे

फ़िरदौस गयावी

तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए

फ़िराक़ गोरखपुरी

रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए

फ़िराक़ गोरखपुरी

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुनून-ए-कारगर है और मैं हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ तो मुझे महबूब तिरा ग़म भी बहुत है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे

फ़ाज़िल जमीली

सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है

फ़ाज़िल जमीली

हम ने किसी की याद में अक्सर शराब पी

फ़ाज़िल जमीली

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