रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है
कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें
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सितारों से उलझता जा रहा हूँ
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
पाते जाना है और न खोते जाना
हाथ आए तो वही दामन-ए-जानाँ हो जाए
ज़ुल्फ़ों से फ़ज़ाओं में अदाहट का समाँ
खुलता ही नहीं हुस्न है पिन्हाँ कि अयाँ
वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगारा
करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए
दीदार में इक-तरफ़ा दीदार नज़र आया