करते नहीं कुछ तो काम करना क्या आए
जीते-जी जान से गुज़रना क्या आए
रो रो के मौत माँगने वालों को
जीना नहीं आ सका तो मरना क्या आए
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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वो पेंग है रूप में कि बिजली लहराए
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
इनायत की करम की लुत्फ़ की आख़िर कोई हद है
पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है
एक रंगीनी ज़ाहिर है गुलिस्ताँ में अगर
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
क़ुर्ब ही कम है न दूरी ही ज़ियादा लेकिन
ज़ेर-ओ-बम से साज़-ए-ख़िलक़त के जहाँ बनता गया