घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर

घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर

जानेगा अब भी तू न मिरा घर कहे बग़ैर

कहते हैं जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न

जानूँ किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बग़ैर

काम उस से आ पड़ा है कि जिस का जहान में

लेवे न कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर

जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम

सर जाए या रहे न रहें पर कहे बग़ैर

छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना

छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर

मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तुगू में काम

चलता नहीं है दशना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर

हर चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू

बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर

बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात

सुनता नहीं हूँ बात मुकर्रर कहे बग़ैर

'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़

ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर

(1241) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ghar Jab Bana Liya Tere Dar Par Kahe Baghair In Hindi By Famous Poet Mirza Ghalib. Ghar Jab Bana Liya Tere Dar Par Kahe Baghair is written by Mirza Ghalib. Complete Poem Ghar Jab Bana Liya Tere Dar Par Kahe Baghair in Hindi by Mirza Ghalib. Download free Ghar Jab Bana Liya Tere Dar Par Kahe Baghair Poem for Youth in PDF. Ghar Jab Bana Liya Tere Dar Par Kahe Baghair is a Poem on Inspiration for young students. Share Ghar Jab Bana Liya Tere Dar Par Kahe Baghair with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.