सितम Poetry (page 21)

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने

ग़यास अंजुम

मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना

ग़ालिब

वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ

ग़ालिब

मैं ने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तिही

ग़ालिब

मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ

ग़ालिब

हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की

ग़ालिब

गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार

ग़ालिब

दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर

ग़ालिब

वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार

ग़ालिब

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था

ग़ालिब

शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

ग़ालिब

न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़

ग़ालिब

मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

ग़ालिब

मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

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