ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना
ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना
क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ
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क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ
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