ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
वगरना हम तो तवक़्क़ो ज़्यादा रखते हैं
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नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की
विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागाना
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह
बू-ए-गुल नाला-ए-दिल दूद-ए-चराग़-ए-महफ़िल
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है