एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही
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चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें
हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
हो चुकीं 'ग़ालिब' बलाएँ सब तमाम
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़