इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं
पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की
Rahat Indori
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मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए
मरते मरते देखने की आरज़ू रह जाएगी
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है