जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है
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अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब'
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है
फ़र्दा-ओ-दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए