देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
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शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई
अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
कब वो सुनता है कहानी मेरी
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है