कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
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रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की
रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजे
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा
शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
वाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं