हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की
अब आबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गई
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थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे
देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है
गिरनी थी हम पे बर्क़-ए-तजल्ली न तूर पर
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो