थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ
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मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
गंजीना-ए-मअ'नी का तिलिस्म उस को समझिए
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
मरते हैं आरज़ू में मरने की
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए