संभलना Poetry

इतना ठहरा हुआ माहौल बदलना पड़ जाए

ज़फ़र इक़बाल

दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे

वाली आसी

हर इक के दुख पे जो अहल-ए-क़लम तड़पता था

तिफ़्ल दारा

जीना क्या है पिछ्ला क़र्ज़ उतार रहा हूँ

तारिक़ नईम

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

राह-ए-दुश्वार में चलना सीखो

शायर फतहपुरी

वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगा

शाद आरफ़ी

अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं

सरफ़राज़ ख़ालिद

कोई पास आया सवेरे सवेरे

सईद राही

हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है

इक़बाल सफ़ी पूरी

जुगनू

फ़िराक़ गोरखपुरी

ठोकरें खा के सँभलना नहीं आता है मुझे

फ़रहत एहसास

मिरे हम-रक़्स साए को बिल-आख़िर यूँही ढलना था

फ़रह इक़बाल

करूँ क्या सख़्त मुश्किल आ पड़ी है

बिल्क़ीस ख़ान

दिल के हर दर्द ने अशआ'र में ढलना चाहा

बशर नवाज़

शिकवा न चाहिए कि तक़ाज़ा न चाहिए

असग़र गोंडवी

वो सर-फिरी हवा थी सँभलना पड़ा मुझे

अमीर क़ज़लबाश

कुछ हँसी खेल सँभलना ग़म-ए-हिज्राँ में नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

मौजूद हैं वो भी बालीं पर अब मौत का टलना मुश्किल है

आजिज़ मातवी

मुश्किल है पता चलना क़िस्सों से मोहब्बत का

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

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