ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे
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ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'
दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर
ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद'