रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो
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मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा
ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक