रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
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पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा