बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर
फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ