निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(10682) Peoples Rate This
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है
वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है
कब वो सुनता है कहानी मेरी
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो
की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से