फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रियाद आया
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बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब
वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ