और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है
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हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के 'असद'
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा
रौ में है रख़्श-ए-उम्र कहाँ देखिए थमे
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए
अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरा
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर