दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
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शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
नज़र लगे न कहीं इन के दस्त-ओ-बाज़ू को
दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए
लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
लेता नहीं मिरे दिल-ए-आवारा की ख़बर
आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'