लेता नहीं मिरे दिल-ए-आवारा की ख़बर
अब तक वो जानता है कि मेरे ही पास है
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ताअत में ता रहे न मय-ओ-अँगबीं की लाग
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए
सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है
इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं
ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद