दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
Javed Akhtar
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पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
ख़मोशियों में तमाशा अदा निकलती है
मौत का एक दिन मुअय्यन है
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'