आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
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शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर
दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल
घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर
वादा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त
मैं और सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का
अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की