गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
याँ दिल में ज़ोफ़ से हवस-ए-यार भी नहीं
Javed Akhtar
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द
मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बे-दाद कि हम