विदा Poetry

था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

मनकूहा

ज़ुबैर रिज़वी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

सुब्ह से शाम तक

ज़िया जालंधरी

ज़र्द पत्तों को हवा साथ लिए फिरती है

ज़फ़र रबाब

मर्ग-ए-एहसास बिल-यक़ीन आख़िर

ज़फ़र रबाब

तंहाई को घर से रुख़्सत कर तो दो

ज़फ़र गोरखपुरी

वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ

यूसुफ़ ज़फ़र

किसी के साथ किया निस्बत हुई थी

यासमीन हबीब

क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी

याक़ूब आमिर

तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे

यगाना चंगेज़ी

निरवान

वज़ीर आग़ा

आज रुख़्सत हो गया दुनिया से इक बीमार-ए-ग़म

वासिफ़ देहलवी

वक़्त-ए-रुख़्सत शबनमी सौग़ात की बातें करो

वलीउल्लाह वली

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

फ़ज़ा में दाएरे बिखरे हुए हैं

वजद चुगताई

बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है

वहीद अख़्तर

अपने घर पर बुला लिया उस ने

तौक़ीर अहमद

अगर कुछ भी मिरे घर से दम-ए-रुख़्सत निकलता है

तारिक़ नईम

ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से

तैमूर हसन

जब मिरे होंटों पे मेरी तिश्नगी रह जाएगी

ताहिर फ़राज़

न मिरे पास इज़्ज़त-ए-रमज़ाँ

ताबाँ अब्दुल हई

बदल गए हो

सय्यद मुबारक शाह

जब मैं रोया हूँ वो रोए हैं ये उल्फ़त मेरे साथ

सय्यद काज़िम अली शौकत बिलगिरामी

तिरी आँखों को तेरे हुस्न का दर जाना था

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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