विदा Poetry (page 9)

मुझे कल के वादे पे करते हैं रुख़्सत

अल्ताफ़ हुसैन हाली

हम रोज़-ए-विदाअ' उन से हँस हँस के हुए रुख़्सत

अल्ताफ़ हुसैन हाली

मेडिकल टेस्ट

अल्ताफ़ हुसैन हाली

जुनूँ कार-फ़रमा हुआ चाहता है

अल्ताफ़ हुसैन हाली

हक़ वफ़ा के जो हम जताने लगे

अल्ताफ़ हुसैन हाली

ग़म-ए-फ़ुर्क़त ही में मरना हो तो दुश्वार नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

उस जबीं पर जो बल पड़े शायद

अलमास शबी

शिकवा

अल्लामा इक़बाल

गोरिस्तान-ए-शाही

अल्लामा इक़बाल

सदाओं के जंगल में वो ख़ामुशी है

अलीमुल्लाह हाली

चाँद को रुख़्सत कर दो

अली सरदार जाफ़री

रो चले चश्म से गिर्या की रियाज़त कर के

अली अकबर नातिक़

देखने में लगती थी भीगती सिमटती रात

अली अकबर अब्बास

जहाँ 'रेहाना' रहती थी

अख़्तर शीरानी

आँसू

अख़्तर शीरानी

दुश्मन-ए-जाँ ही सही साथ तो इक उम्र का है

अख़्तर सईद ख़ान

दिल-ए-शोरीदा की वहशत नहीं देखी जाती

अख़्तर सईद ख़ान

फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया

अख़्तर अंसारी

दूर तक बस इक धुँदलका गर्द-ए-तन्हाई का था

अकबर हैदराबादी

इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम

अकबर इलाहाबादी

न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी

अकबर इलाहाबादी

ख़ुशी क्या हो जो मेरी बात वो बुत मान जाता है

अकबर इलाहाबादी

आज आराइ-ए-शगेसू-ए-दोता होती है

अकबर इलाहाबादी

ग़म सभी दिल से रुख़्सत हुए

अजमल सिराज

और तो ख़ैर क्या रह गया

अजमल सिराज

मिरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है

ऐतबार साजिद

आवारा भटकता रहा पैग़ाम किसी का

ऐन ताबिश

हिम्मत-ए-मर्दां

अहमक़ फफूँदवी

मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता

अहमद नदीम क़ासमी

जब भी आँखों में तिरी रुख़्सत का मंज़र आ गया

अहमद नदीम क़ासमी

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