इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1566) Peoples Rate This
दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
नई तहज़ीब
बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
तरीक़-ए-इश्क़ में मुझ को कोई कामिल नहीं मिलता
फ़र्ज़ी लतीफ़ा
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या