बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
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तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
एज़ाज़-ए-सलफ़ के मिटते जाते हैं निशाँ
न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
डिनर से तुम को फ़ुर्सत कम यहाँ फ़ाक़े से कम ख़ाली
मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
मिल गया शरअ से शराब का रंग