एज़ाज़-ए-सलफ़ के मिटते जाते हैं निशाँ
अगले से ख़यालात हिन्द में अब वो कहाँ
सय्यद बनना हो तो बनो सर-सय्यद
होना हो जो ''ख़ाँ'' तो बनो अंग्रेज़-ख़्वाँ
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1183) Peoples Rate This
जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
हुए इस क़दर मोहज़्ज़ब कभी घर का मुँह न देखा
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है
ये सुस्त है तो फिर क्या वो तेज़ है तो फिर क्या
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
अगर मज़हब ख़लल-अंदाज़ है मुल्की मक़ासिद में
मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
मेरे हवास-ए-इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें