मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट
इल्मी मुबाहिसे हों ज़रा पास आ के लेट
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बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
अपनी गिरह से कुछ न मुझे आप दीजिए
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
लीडरों की धूम है और फॉलोवर कोई नहीं
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का
क्या जानिए सय्यद थे हक़ आगाह कहाँ तक
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो