हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
कि वो जामे से बाहर है ये पाजामे से बाहर है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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तकमील में उन उलूम के हो मसरूफ़
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
क्या पूछते हो 'अकबर'-ए-शोरीदा-सर का हाल
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का
यूँ मिरी तब्अ से होते हैं मआनी पैदा
मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है
आई होगी किसी को हिज्र में मौत
जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या