मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है
मगर हाँ देखना है आप का हाजत-रवा होना
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इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है
मज़हब का हो क्यूँकर इल्म-ओ-अमल दिल ही नहीं भाई एक तरफ़
कुछ नहीं कार-ए-फ़लक हादसा-पाशी के सिवा
मेरी ये बेचैनियाँ और उन का कहना नाज़ से
दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी
ख़िलाफ़-ए-शरअ कभी शैख़ थूकता भी नहीं
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
कॉलेज से आ रही है सदा पास पास की
दुनिया से मेल की ज़रूरत ही नहीं
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका