मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
मजनूँ का नाम हो गया क़िस्मत की बात है
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जल्वा न हो मअ'नी का तो सूरत का असर क्या
वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
अगर मज़हब ख़लल-अंदाज़ है मुल्की मक़ासिद में
बी.ए भी पास हों मिले बी-बी भी दिल-पसंद
बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
मिल गया शरअ से शराब का रंग
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह का
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए
मैं भी ग्रेजुएट हूँ तुम भी ग्रेजुएट