वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे

वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे

वो फ़लक न रहा वो समाँ न रहा वो मकाँ न रहे वो मकीं न रहे

वो गुलों में गुलों की सी बू न रही वो अज़ीज़ों में लुत्फ़ की ख़ू न रही

वो हसीनों में रंग-ए-वफ़ा न रहा कहें और की क्या वो हमीं न रहे

न वो आन रही न उमंग रही न वो रिंदी ओ ज़ोहद की जंग रही

सू-ए-क़िबला निगाहों के रुख़ न रहे और दर पे नक़्श-ए-जबीं न रहे

न वो जाम रहे न वो मस्त रहे न फ़िदाई-ए-अहद-ए-अलस्त रहे

वो तरीक़ा-ए-कार-ए-जहाँ न रहा वो मशाग़िल-ए-रौनक़-ए-दीं न रहे

हमें लाख ज़माना लुभाए तो क्या नए रंग जो चर्ख़ दिखाए तो क्या

ये मुहाल है अहल-ए-वफ़ा के लिए ग़म-ए-मिल्लत ओ उल्फ़त-ए-दीं न रहे

तिरे कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में दिल है मिरा अब उसे मैं समझता हूँ दाम-ए-बला

ये अजीब सितम है अजीब जफ़ा कि यहाँ न रहे तो कहीं न रहे

ये तुम्हारे ही दम से है बज़्म-ए-तरब अभी जाओ न तुम न करो ये ग़ज़ब

कोई बैठ के लुत्फ़ उठाएगा क्या कि जो रौनक़-ए-बज़्म तुम्हीं न रहे

जो थीं चश्म-ए-फ़लक की भी नूर-ए-नज़र वही जिन पे निसार थे शम्स ओ क़मर

सो अब ऐसी मिटी हैं वो अंजुमनें कि निशान भी उन के कहीं न रहे

वही सूरतें रह गईं पेश-ए-नज़र जो ज़माने को फेरें इधर से उधर

मगर ऐसे जमाल-ए-जहाँ-आरा जो थे रौनक़-ए-रू-ए-ज़मीं न रहे

ग़म ओ रंज में 'अकबर' अगर है घिरा तो समझ ले कि रंज को भी है फ़ना

किसी शय को नहीं है जहाँ में बक़ा वो ज़ियादा मलूल ओ हज़ीं न रहे

(1341) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Wo Hawa Na Rahi Wo Chaman Na Raha Wo Gali Na Rahi Wo Hasin Na Rahe In Hindi By Famous Poet Akbar Allahabadi. Wo Hawa Na Rahi Wo Chaman Na Raha Wo Gali Na Rahi Wo Hasin Na Rahe is written by Akbar Allahabadi. Complete Poem Wo Hawa Na Rahi Wo Chaman Na Raha Wo Gali Na Rahi Wo Hasin Na Rahe in Hindi by Akbar Allahabadi. Download free Wo Hawa Na Rahi Wo Chaman Na Raha Wo Gali Na Rahi Wo Hasin Na Rahe Poem for Youth in PDF. Wo Hawa Na Rahi Wo Chaman Na Raha Wo Gali Na Rahi Wo Hasin Na Rahe is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Hawa Na Rahi Wo Chaman Na Raha Wo Gali Na Rahi Wo Hasin Na Rahe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.