मुझ को तो देख लेने से मतलब है नासेहा
बद-ख़ू अगर है यार तो हो ख़ूब-रू तो है
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पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'
ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
हुए इस क़दर मोहज़्ज़ब कभी घर का मुँह न देखा
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
आह जो दिल से निकाली जाएगी
जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है