मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा
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इक बोसा दीजिए मिरा ईमान लीजिए
भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़
ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके
बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए
मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है
वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'