मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
'नासिख़' ओ 'ज़ौक़' भी जब चल न सके 'मीर' के साथ
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तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी
रहमान के फ़रिश्ते गो हैं बहुत मुक़द्दस
ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके
मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
ग़म्ज़ा नहीं होता कि इशारा नहीं होता
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है