आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
हम तो ए.बी में रहे अग़्यार बी.ए हो गए
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
शैख़ की दावत में मय का काम क्या
लिपट भी जा न रुक 'अकबर' ग़ज़ब की ब्यूटी है
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर
मदरसा अलीगढ़
मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है
वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
आह जो दिल से निकाली जाएगी