असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा
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मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
मेहरबानी है अयादत को जो आते हैं मगर
जहाँ में हाल मिरा इस क़दर ज़बून हुआ
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
कुछ नहीं कार-ए-फ़लक हादसा-पाशी के सिवा
पैदा हुआ वकील तो शैतान ने कहा
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
आम-नामा
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
मेरी ये बेचैनियाँ और उन का कहना नाज़ से