तय्यार थे नमाज़ पे हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर
जल्वा बुतों का देख के नीयत बदल गई
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बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है
दिल मिरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला
मेरी तक़दीर मुआफ़िक़ न थी तदबीर के साथ
जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
क्या पूछते हो 'अकबर'-ए-शोरीदा-सर का हाल
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ 'अकबर'
रहमान के फ़रिश्ते गो हैं बहुत मुक़द्दस
पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगा
कॉलेज से आ रही है सदा पास पास की
भूलता जाता है यूरोप आसमानी बाप को
जल्वा अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार का