तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
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असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
आशिक़ी का हो बुरा उस ने बिगाड़े सारे काम
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
सौ जान से हो जाऊँगा राज़ी मैं सज़ा पर
मिल गया शरअ से शराब का रंग
वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
शेख़ ने नाक़ूस के सुर में जो ख़ुद ही तान ली
अकबर दबे नहीं किसी सुल्ताँ की फ़ौज से
क्या ही रह रह के तबीअ'त मिरी घबराती है