सीने से लगाएँ तुम्हें अरमान यही है
जीने का मज़ा है तो मिरी जान यही है
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ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
ख़ुदा से माँग जो कुछ माँगना है ऐ 'अकबर'
मिल गया शरअ से शराब का रंग
दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो
पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा
बोले कि तुझ को दीन की इस्लाह फ़र्ज़ है
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें
पड़ जाएँ मिरे जिस्म पे लाख आबले 'अकबर'
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं
डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है