बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें
बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
ग़म-ख़ाना-ए-जहाँ में वक़अत ही क्या हमारी
तुम नाक चढ़ाते हो मिरी बात पे ऐ शैख़
इल्म ओ हिकमत में हो अगर ख़्वाहिश-ए-फ़ेम
ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
उन्हें भी जोश-ए-उल्फ़त हो तो लुत्फ़ उट्ठे मोहब्बत का
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो
ज़िद है उन्हें पूरा मिरा अरमाँ न करेंगे