जीने Poetry

हम को आगही न दो

मर्यम तस्लीम कियानी

मुसलमान और हिन्दोस्तान

हिन्दी गोरखपुरी

चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है

रश्मि सबा

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

मैं तिरे लुत्फ़-ओ-करम का जब से रस पीने लगा

अख़्तर हाशमी

कल से आज तक

दौर आफ़रीदी

महाऋषि-स्वामी-दयानंद

चरख़ चिन्योटी

जवाँ आग

हबीब जालिब

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

ज़ुबैर रिज़वी

आँखों में है बसा हुआ तूफ़ान देखना

ज़ुबैर फ़ारूक़

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना

ज़ीशान साहिल

मरने का सुख जीने की आसानी दे

ज़ेब ग़ौरी

दिल के बुझते हुए ज़ख़्मों को हवा देता है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

निगाह-ए-शौक़ को रुख़ पर निसार होने दो

ज़हीर अहमद ताज

हम ने तो शराफ़त में हर चीज़ गँवा दी है

ज़ाहिदुल हक़

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

क्या दुआ-ए-फ़र्सूदा हर्फ़-ए-बे-असर माँगूँ

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

अब दर्द बे-दयार है और जग-हँसाई है

ज़हीर फ़तेहपूरी

क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई

ज़हीर देहलवी

हाथ से हैहात क्या जाता रहा

ज़हीर देहलवी

हरे पत्तो सुनहरी धूप की क़ुर्बत में ख़ुश रहना

ज़फ़र सहबाई

सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

ज़फ़र गोरखपुरी

हर लहज़ा मिरी ज़ीस्त मुझे बार-ए-गराँ है

यूसुफ़ तक़ी

जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

नज़रों में कहाँ उस की वो पहला सा रहा मैं

याक़ूब आमिर

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में

वसीम बरेलवी

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